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28 अगस्त 2017

कालचक्र

एक ओल्ड ऐज होम, वहाँ एक कमरे के बाहर, एक आदमी और एक लेडी डॉ, " देखिये मैंने आपकी माँ का चेकअप कर लिया है.... वो अब कुछ दिनों की ही मेहमान हैं.. मै कुछ मेडिसन लिख रही हूँ.. इनसे उन्हें कम तकलीफ होगी... और हाँ मेरी फीस है 1200 रूपए " डॉ ने उस आदमी से कहा, डॉ की बात सुनकर वो चौंकते हुए बोला " 1200 रूपए... फीस ??? " " जी हां... मै अपना क्लीनिक छोड़ कर यहाँ आई हूँ " डॉ ने बुरा सा मुँह बना कर कहा, उस आदमी ने अनमने मन से डॉ को फीस दी और फिर सामने के कमरे मे चला गया, वो एक छोटा सा कमरा था, सामने एक बेड पर एक बूढी महिला लेटी थीं, बेड के बराबर मे स्टूल पर एक टेबल फैन रखा था जो उन बूढी महिला की तरह ही बूढा लग रहा था, उसकी हवा फेंकने की रफ़्तार से लग रहा था जैसे वो भी अपने अंतिम समय का इंतज़ार कर रहा हो|

किसी के कमरे मे आने की आहट सुनकर उन महिला ने लेटे-2 ही पलटकर देखा, अपने बेटे को खड़ा देख कर उन्होंने बेटे से पूँछा " क्या कहा डॉ ने... कितनी और साँसे बाकी हैं मेरी " ये पूँछते समय उनकी आवाज़ मे असीम कष्ट था लेकिन चेहरे पर एक मुस्कान तैर रही थी, " कुछ नहीं माँ... दवाई लिख दी है... मै अभी देता हुआ जाऊँगा " उसने अपनी कलाई घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, " बेटा.. बहू और पोते को नहीं लाये अपने साथ " " माँ आपको पता है रूचि अपने काम मे कितना बिजी रहती है.. अच्छा माँ मै अब चलता हूँ.. शाम को दवाई भिजवा दूँगा " उसके लिये अब एक पल भी वहां रुकना मुश्किल हो रहा था," बेटा क्या मेरा एक काम करोगे " " बोलिये क्या काम है " 

उसने बड़ी बेरुखी से कहा, " बेटा... मेरे मरने के बाद इस वृद्धाश्रम मे 20 गद्दे, रसोई मे एक फ्रिज और 5 ऐसे पँखे दे देना.... यहाँ के सारे गद्दे फ़टे और पुराने हो गये हैं और फ्रिज ना होने से सबको गर्मी मे गर्म पानी पीना पड़ता है..... और यहाँ के पँखे तो बिल्कुल मेरे जैसे हो गये हैं.... बूढ़े और बेकार... कभी भी बंद हो जाते हैं " " माँ अगर आपको यहाँ इतनी तकलीफ थी तो मुझे पहले बतातीं.... मै आपको किसी दूसरे ओल्ड ऐज होम मे डाल देता " उसने बुरा सा मुँह बना कर बड़ी बेरुखी से जवाब दिया, " नहीं बेटा ये मै अपने लिये नहीं कह रही.... मुझे तो यहाँ 7-8 साल रहते-2 इन सबकी आदत सी पड़ गई है.. और अब अंतिम समय मे मै इन सबका क्या करुँगी.... बेटा ये तो मै तुम्हारे लिये कह रही थी... जब तुम्हारा बेटा बड़ा होकर तुम्हें यहाँ भेजेगा तब तुम्हें इनकी जरूरत पड़ेगी.. तुम्हें इन सबके बगैर रहने की आदत नहीं है ना इसलिये.... और फिर तब मै भी तो नहीं रहूँगी तुम्हारी देखभाल करने के लिये " 

और इतना बोलकर उनकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई और इधर वो पँखा भी चलते-2 रुक गया, कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छा चुका था, और उससे भी बड़ा सन्नाटा उस आदमी के दिमाग मे छाया हुआ था, वो भौंचक्का सा कभी अपनी माँ को देख रहा था तो कभी उस रुके हुए पँखे को.......... माँ दुनिया का सबसे अनमोल रत्न है.... उन्हें यू अकेले खूद से दूर करके कष्ट ना दे...

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-08-2017) को कई सरकार खूंटी पर, रखी थी टांग डेरे में-: चर्चामंच 2711 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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